बुधवार, 11 जून 2008

स्नेह - दो पल का

जिंदगी मुझसे तू नाराज़ क्यूँ है?
मेरी दुनियाँ आज, इतनी उदास क्यूँ है?
कल भी कोई न था, आज भी नहीं अपना कोई,
फ़िर किसी के खोने का यह अहसास क्यूँ है?
तन्हा तो पहले भी थी, इसमें नई बात क्या,
पर आज मेरी दुनियाँ इतनी विरान क्यूँ है?
समसान-सी खामोशी फैली है हर कहीं,
पर मेरे जिस्त में ये तूफान क्यूँ है?
आँखें तो मैं बंद कर लेती हूँ, पर इस दिल से क्या कहूँ,
के धडकनों में गूँजती उनकी ही आवाज क्यूँ है?
उनको पाने की तमन्ना तो कभी की नहीं थी मैनें,
फ़िर आज, सिर्फ़ उनका ही अरमान क्यूँ है?
आज चाह कर भी, अपना उन्हें बना नहीं पाई मैं,
आख़िर मेरी कोशिश इतनी नाकाम क्यूँ है?
ऐ जिंदगी! मुझे बस इतना ही बता दे,
के मेरी मोहब्बत का, ये अंजाम क्यूँ है?
जिंदगी-भर की प्रीत नहीं, सिर्फ़ ' दो पल का स्नेह था ',
उनकी इस बात से, दिल परेशान क्यूँ है?
इतनी आसानी से कह गए, "भूल जाना हमें"
कैसे बताऊँ, के उन्हीं से शुरू मेरी कायनात क्यूँ है।
हमने भी हँस कर अलविदा कह दिया उन्हें,
और वो समझे नहीं, के होंठों पे मेरे ये मुस्कान क्यूँ है।
वो शख्स बेवफा न होके भी, बेवफा है
फिरभी, इस दिल पे उनका ही इक्तियार क्यूँ है?
जिंदगी छीन कर जीने को कह गए वो,
और पूछते गए "हमसे इतना प्यार क्यूँ है?"
क्या जवाब दूँ मैं, इस सवाल का उनके,
क्या समझाऊं के अपने खुदा पे ऐतबार क्यूँ है।
मुड के चले गए, कभी न लौटने के लिए,
पलकें बिछाए बैठी हूँ, न जाने उनका
आज भी इन्तजार क्यूँ है??

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