सोमवार, 21 जुलाई 2008

मोहब्बत का नजराना

जब भी उनके प्यार की चाहत हुई,
हमें तो आँसुओं का नजराना मिला।
जब भी हमें उनकी जरुरत हुई,
हर- बार बस एक नया बहाना मिला।
जब भी उनके साथ की तमन्ना हुई,
हमें तो तन्हाइयों का ही सहारा मिला।
औरों की दुनिया में,
खुशियाँ लाई हो बेशक! ये मोहब्बत,
हमें तो,
जलती हुई दीवारों का आशियाना मिला!!!


बुधवार, 16 जुलाई 2008

तेरी आगोश

एक शाम थोड़ी शरमाई-सी
जब इन फिजाओं में बिखर गई,
तब याद ही न रहा के कब वो शाम
मुझे,तेरी आगोश में भर गई।
तुम्हारी बाँहों की पनाहों में तो
हम, अपनी जिंदगी गुजार दें
वो शाम तो बस कुछ लम्हों में गुजर गई।
उन लम्हों ने मुझे, एक नया अहशास दिया है,
तुम्हारी बाँहों में जिंदगी गुजरेगी ,
मुझे ये विश्वाश दिया है।
तेरी बाँहों में बिखर के
ख़ुद को सँवरता देखा,
तेरे होंठों को छू के
ख़ुद को निखरता देखा,
तब लगा जैसे पुरी कायनात
तेरी बाँहों में सिमट गई,
तब याद ही न रहा के कब वो शाम
मुझे, तेरी आगोश में भर गई,
एक शाम थोड़ी शरमाई-सी
जब इन फिजाओं में बिखर गई।

तुम्हारी पनाह

हर जख्म हमें तुमसे ही मिले
किसी और की इतनी हैशियत ही कहाँ थी,
अश्क बहे सिर्फ़ तेरे ही लिए
किसी और से इतनी मोहब्बत ही कहाँ थी,
तुम्हारी बाँहों में बीता हर लम्हा, सामने खड़ा था
उन लम्हों से नजरें मिलाने की,
मुझमे अब हिम्मत ही कहाँ थी।
तुम्हें एक पल को भी मेरी याद न आई होगी,
पर मेरे ख्यालों में किसी और की जगह ही कहाँ थी।
तुम्हें पाने की हशरत से,अपना आशियाँ छोड़ दिया हमने
पर, आज जब टूट के बिखरी तो,
तुम्हारी 'पनाह' भी कहाँ थी....