किसी मुजस्समे से मोहब्बत की खता कि थी हमने
और सजा कुछ इस तरह से पाई है .......
जिंदगी तो ना रही अपनी
और अब तो मौत भी, अपने लिए पराई है।
उनकी वफाओं का मंजर तो देखा ही नहीं
जिनकी इतनी हसीं बेवफाई है,
दिल के जख्म एक बार फ़िर मुस्कुराने लगे;
जब से उनके आने की ख़बर आई है।
जिंदगी गुजार दी जिनकी यादों में हमने
अब तलक उनके रुख पे, बेरुखी ही छाई है।
किसी मुजस्समे से मोहब्बत कि खता कि थी
और सजा कुछ इस तरह से पाई है .......
इतनी बेरंग ना होती थी जिंदगी हमारी
पर ना जाने ये कैसे रंग मोहब्बत लेके आई है,
महफिलें सजतीं थी बस एक होने से हमारे,
अब तो हर कहीं विरानगी ही छाई है।
फिरभी नहीं कोई शिकवा, ना शिकायत, ना गिला
क्यूंकि ये दिन भी हमें, उनकी मोहब्बत ने ही दिखाई है।
किसी मुजस्समे से मोहब्बत कि खता कि थी हमने
और सजा कुछ इस तरह से पाई है .......
हर चेहरे में उनका ही नक्श, हर तस्वीर में उनका ही अक्स,
अपनी छवि में भी उनकी ही परछाईं है।
रु- ब-रु हुए जिंदगी कि हकीकत से, तब अहसास हुआ,
हमारे जीस्त में रह गई, सिर्फ़ और सिर्फ़ तन्हाई है।
चरगे-इश्क से अपनी दुनिया रौशन कि थी,
पर, हर पल हमारी खुशियाँ, उसकी ही लौ ने जलाई है।
दिल के दर्द को वो कभी समझ ना सके,
और न समझे के हमारी मोहब्बत में कितनी गहराई है।
किसी मुजस्समे से मोहब्बत की खता कि थी और
सजा कुछ इस तरह से पाई है .......
दिल तो मेरा भी अब हो गया है पत्थर
पर आँखों में अश्क छलक आए,
जब भी उनकी याद आई है।
इक नजर ही प्यार से देख लेते वो कभी,
जिनके इन्तजार में पुरी जिंदगी बिताई है।
पर उनसे मोहब्बत की क्या उम्मीद करते हम,
जिनकी निगाहों में ही बेवफाई है।
किसी मुजस्समे से मोहब्बत की खता की थी हमने,
और सजा कुछ इस तरह से पाई है .....