बुधवार, 11 जून 2008

ऐ मेघ !

ऐ मेघ! अब बस भी करो
तुम्हारा बरसना अब लाजमी नहीं ,
तुम्हारे बरसने का अर्थ
सदियों से कोई समझ न पाया,
तुम बरसते रहे!
सब कुछ धुल गया,
बहुत कुछ धुल गया,
पेड़,पौधे,घरौंदे
सब कुछ धुल गया,
पर तुम आज भी बरस रहे हो
सदियों से बरस रहे हो
परन्तु, सब व्यर्थ!
इसलिए, अब बस भी करो!
तुम धो नहीं पाओगे,
कामयाब हो नहीं पाओगे,
तुम्हारे आते ही लोग घरों में छुप जाते हैं,
तुम उन्हें छू नहीं पाओगे
उनके मन का मैल धो नहीं पाओगे।
समझते क्यूँ नहीं तुम!
वो "इंसान" हैं,
तुम उन्हें बदल नहीं पाओगे
इसलिए, अब बस करो
तुम्हारा बरसना अब लाजमी नहीं,
ऐ मेघ! अब बस भी करो!!

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